बहुत समय पहले की बात है। विजयनगर राज्य में राजा कृष्णदेव राय का राज था। वे न्यायप्रिय थे, लेकिन कई बार लोग उनकी सरलता का फायदा उठाने की कोशिश करते थे।
एक दिन दरबार में एक अजनबी व्यापारी आया। उसने खास तरह के कपड़े पहने थे, और उसकी आवाज़ बहुत भरोसेमंद लग रही थी।
वह राजा के सामने झुका और बोला,
“महाराज, मैं दूर देश से आया हूँ। मेरे पास एक ऐसा घोड़ा है जो हर महीने सोना देता है। अगर आप चाहें, तो मैं वैसा ही घोड़ा आपके लिए भी ला सकता हूँ।”
राजा ने चौंककर पूछा, “सोना देने वाला घोड़ा? क्या ये संभव है?”
व्यापारी मुस्कराया, “महाराज, यह विशेष नस्ल का घोड़ा है। उसे खास भोजन दिया जाता है। मैं केवल 1,000 सोने की मुद्राएं और एक साल का समय चाहता हूँ। एक साल में मैं घोड़ा लेकर आ जाऊँगा।”
कुछ दरबारियों ने व्यापारी पर भरोसा किया। राजा भी सोच में पड़ गए।
आखिरकार, राजा ने सोचा, “अगर ये सच है, तो यह राज्य के लिए बहुत लाभदायक होगा।”
उन्होंने व्यापारी को एक साल का समय और 1,000 सोने की मुद्राएं दे दीं।
तेनालीराम को शक हुआ
जब यह बात तेनालीराम को पता चली, तो उन्होंने कहा,
“महाराज, यह व्यक्ति मुझे धोखेबाज़ लगता है। ऐसा घोड़ा कभी नहीं सुना जो सोना दे।”
राजा बोले, “पर वह बहुत विश्वास से बात कर रहा था।”
तेनालीराम ने कहा, “यदि आप अनुमति दें, तो मैं इस व्यापारी की परीक्षा करना चाहता हूँ।”
राजा ने सहमति दे दी।
तेनालीराम की योजना
तेनालीराम कुछ सिपाहियों के साथ व्यापारी के गाँव पहुँचे। वहाँ व्यापारी आराम से रह रहा था और नया घर बनवा रहा था।
तेनालीराम ने उसे गिरफ्तार करवाया और कहा,
“राजा ने आदेश दिया है कि या तो अभी घोड़ा दो या जेल में डाल दिए जाओगे।”
व्यापारी डर गया। “पर मुझे एक साल का समय मिला था!”
तेनालीराम बोले, “ठीक है, हम भी तुम्हें एक सोना खाने वाला घोड़ा देंगे। अगर वो एक साल में सोना नहीं दिया, तो तुम्हें जेल जाना होगा।”
उन्होंने एक बूढ़ा, कमजोर घोड़ा लाकर व्यापारी को सौंप दिया।
व्यापारी चिल्लाया, “ये घोड़ा तो ठीक से चल भी नहीं सकता!”
तेनालीराम ने मुस्करा कर कहा, “और तुम्हारा घोड़ा तो सोना दे सकता है? अगर वो असंभव है, तो ये भी असंभव है।”
व्यापारी की सच्चाई सामने आई
अब व्यापारी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने स्वीकार किया कि उसने राजा को धोखा देने की कोशिश की थी।
सिपाहियों ने उसे बंदी बना लिया और राजा के सामने लाया।
राजा ने कहा: “तेनालीराम, तुम्हारी चतुराई ने राज्य को बहुत बड़ा नुकसान होने से बचाया है। तुम सच में हमारे सबसे बुद्धिमान मंत्री हो।”
तेनालीराम मुस्कराए और बोले,
“महाराज, कभी-कभी बातें सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं, असल में उतनी होती नहीं। सिर्फ बुद्धि ही असली धन है।”