बहुत समय पहले की बात है। उज्जैन के राजा विक्रमादित्य बहुत साहसी और बुद्धिमान थे। वे हर रात श्मशान में जाकर वेताल को पकड़ने की कोशिश करते थे।
वेताल एक भूत था, जो हर बार एक कहानी सुनाता और अंत में एक पहेली पूछता। अगर राजा जवाब जानते हुए चुप रहते, तो उनका सिर फट जाता। और अगर बोले, तो वेताल उड़ जाता।
एक रात, वेताल ने फिर से राजा के कंधे पर बैठकर कहानी शुरू की।
वेताल की कहानी शुरू होती है…
एक नगर में राजा वीरसेन राज करता था। उसके दरबार में दो नौजवान मंत्री थे – सूरज और चंदन।
एक दिन, राजा ने एक सुंदर युवती को देखा और उसे रानी बनाने का निर्णय लिया। लेकिन समस्या यह थी कि सूरज और चंदन दोनों को भी वही युवती पसंद थी।
राजा को जब यह बात पता चली, तो उसने युवती से पूछा, “तुम किससे विवाह करना चाहती हो?”
युवती बोली, “मैं दोनों को पसंद करती हूँ, लेकिन फैसला आप करें।”
राजा ने सोचा और एक परीक्षा ली।
उसने कहा, “जो भी सच्चा प्रेमी होगा, वह अपने प्यार के लिए त्याग करेगा।”
सूरज ने तुरंत कहा, “अगर चंदन उससे शादी करता है और वो खुश रहती है, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं।”
चंदन बोला, “नहीं! मैं ही योग्य हूं, मैं उससे विवाह करूंगा।”
राजा ने युवती की शादी सूरज से कर दी।
अब वेताल ने पूछा:
“हे राजा विक्रम! बताओ, दोनों में से सच्चा प्रेमी कौन था – सूरज या चंदन?”
राजा विक्रम बोले:
“सच्चा प्रेमी सूरज था। क्योंकि उसने अपने प्रेम के लिए त्याग किया। जहां स्वार्थ न हो, वही सच्चा प्रेम होता है।”
वेताल हँसा, बोला, “बिलकुल सही उत्तर, लेकिन तुम बोले, इसलिए मैं फिर उड़ता हूँ!”
फिर वेताल उड़ गया, और राजा विक्रम चुपचाप उसके पीछे चल पड़े।