बहुत समय पहले की बात है, उज्जयिनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य अपने न्याय और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध थे। एक दिन, एक तांत्रिक ने उनसे एक विशेष कार्य करने के लिए कहा। उसने बताया कि एक बेताल (भूत) एक पुराने पीपल के पेड़ पर लटका हुआ है और अगर राजा उसे पकड़कर लाएँ, तो उसे एक महान शक्ति प्राप्त होगी।
राजा विक्रम अपने साहस के लिए जाने जाते थे, इसलिए उन्होंने बिना डरे इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। अंधेरी रात में, तलवार हाथ में लिए, वे उस पीपल के पेड़ के पास पहुँचे। वहाँ, उल्टा लटका हुआ बेताल उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।
जैसे ही राजा ने बेताल को पकड़ा और उसे अपनी पीठ पर रखा, बेताल ने हँसते हुए कहा, “राजन, रास्ता लंबा है। अगर तुम बिना कुछ बोले मुझे ले जाओगे, तो मैं चुपचाप रहूँगा। लेकिन अगर तुमने कुछ भी कहा, तो मैं उड़कर वापस पेड़ पर पहुँच जाऊँगा।”
राजा विक्रम ने बिना कुछ कहे आगे बढ़ना शुरू किया, लेकिन बेताल चालाक था। उसने राजा को एक दिलचस्प कहानी सुनानी शुरू कर दी।
बेताल की पहली कहानी:
बेताल ने एक राजा की कहानी सुनाई, जिसकी तीन रानियाँ थीं। एक दिन राजा की मृत्यु हो गई। पहली रानी ने कहा, “मैं अपने पति के साथ सती हो जाऊँगी।” दूसरी रानी ने कहा, “मैं अपने पति के शरीर को सुरक्षित रखूँगी।” तीसरी रानी ने कहा, “मैं अपने पति को फिर से जीवित करूँगी।” कुछ समय बाद, तीसरी रानी ने एक तांत्रिक उपाय से राजा को पुनर्जीवित कर दिया।
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा, “राजन, इन तीनों में से किस रानी का प्रेम सबसे बड़ा था?”
राजा विक्रम न्यायप्रिय थे। उन्होंने उत्तर दिया, “तीसरी रानी का प्रेम सबसे बड़ा था, क्योंकि उसने अपने पति को पुनर्जीवित किया, जबकि अन्य दो ने केवल अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।”
जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल ज़ोर से हँसा और कहा, “राजन, तुमने मुँह खोल दिया! अब मैं वापस पेड़ पर जा रहा हूँ।” और यह कहकर वह फिर से उड़कर उसी पीपल के पेड़ पर जा बैठा।
राजा विक्रम को यह देखकर क्रोध तो आया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वे फिर से बेताल को पकड़ने गए।
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि धैर्य और साहस से ही सफलता प्राप्त होती है। राजा विक्रम ने हार नहीं मानी, और बार-बार प्रयास किया। यही सच्चे योद्धा की पहचान होती है।
समाप्त।